Surdas Ka Jivan Parichay –सूरदास की जीवनी Biography in Hindi & English

 “जय मीरा के गिरधर नागर सूरदास के श्याम, नरसी के प्रभु शाह सांवरिया तुलसीदास के राम…” आज सुबह-सुबह यह भजन चल रहा था। आनंद आ गया इसे सुनकर। भजन कोई भी हो, कानों को उसे सुनने में आनंद की ही प्राप्ति होती है। हमारे देश में भक्तों की बिल्कुल भी कमी नहीं है। हमेशा से ही इस धरती पर ना जाने कितने ही भक्तों ने जन्म लिया है। बहुत पुराने समय में सिर्फ भक्ति और पूजन से ही प्रभु को प्रसन्न किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे भजन भी प्रचलन में आ गए। पर क्या आपको भजन शब्द का इतिहास पता है?

Surdas Ka Jivan Parichay


सूरदास का जीवन परिचय (Surdas Ka Jivan Parichay in)

तो हम ऊपर ऊपर की पंक्तियों में भजन शब्द के इतिहास के बारे में बात कर रहे थे। तो आखिर यह भजन शब्द आया कहां से? दरअसल भजन शब्द की उत्पत्ति भक्ति आंदोलन के दौरान हुई थी। धीरे-धीरे भजनों का यह दौर सभी हिंदू धर्म के लोगों के बीच लोकप्रिय होता चला गया। भजनों को दुनियाभर में लोकप्रिय करने का श्रेय मीराबाई, सूरदास, नरसिंह मेहता, और तुलसीदास जैसे महान भक्तों को जाता है। भजन को संगीत की ही शैली में डाला जाता है। भजन गाकर एक भक्त अपने प्रभु की आराधना करता है। भजन तीन प्रकार के होते हैं- शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत और लोक संगीत। इन सभी का अपना-अपना महत्व होता है। जैसे मीराबाई को श्री कृष्ण का महान भक्त माना जाता है ठीक उसी प्रकार सूरदास भी है। तो आज हम सूरदास की जीवनी के बारे में (surdas ka jeevan parichay) हिंदी में जानेंगे।

सूरदास का जीवन परिचय

जैसे तुलसीदास जी को महान राम भक्त माना जाता था ठीक उसी प्रकार ही सूरदास जी को भी कृष्ण भक्त माना जाता था। वह हर पल कृष्ण की भक्ति में ही डूबे रहते थे। उनकी भक्ति की चर्चा हर जगह थी। बहुत लोग यह मानते हैं कि वह जन्म से ही अंधे थे। तो कई लोग ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि वह बचपन से अंधे नहीं थे। बल्कि वह बाद में अंधे हुए। सूरदास का जन्म रुनकता’ नामक ग्राम में हुआ था। इनका जन्म 1478 ई० के आसपास माना जाता है। इनके पिता का नाम पंडित राम दास जी था। इनकी माता का नाम जमुनादास था।

जन्म स्थानरुनकता ग्राम
जन्म तारीख1478 ई०
नामसूरदास
मृत्यु का स्थानपारसौली
पिता का नामपंडित रामदास
माता का नामजमुनादास बाई
गुरुआचार्य बल्लभाचार्य
भक्ति का रूपकृष्ण की भक्ति
निवास स्थानश्रीनाथ मंदिर
भाषा की शैलीब्रज
काव्य कृतियांसूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी
साहित्य में योगदानकृष्ण की बाल- लीलाओं तथा कृष्ण लीलाओं का चित्रण
रचनाएंसूरसागर, साहित्य लहरी, सूरसारावली
पत्नी का नामकई लोग मानते हैं उनका नाम रत्नावली था। कई लोग मानते हैं कि वह ब्रह्मचारी थे।

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सूरदास का बचपन

सूरदास का जन्म 1478 में सीही में हुआ था। उनका घर रुनकता गाँव में था। कहते हैं कि सूरदास जी का जन्म सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका परिवार निर्धनता के साथ अपना गुजारा कर रहा था। वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। बहुत से लोग यह मानते हैं कि वह जन्म से ही अंधे थे। क्योंकि वह अंधे थे इसलिए उनके माता-पिता और बड़े भाई इनका सम्मान नहीं करते थे।

वह हर पल सूरदास के अंधेपन का मजाक उड़ाते थे। कोई भी माता-पिता का यह फर्ज बनता है कि वह अपने बच्चे की जरूरतों को पूरा करे। लेकिन सूरदास के माता-पिता का दिल सूरदास के लिए पत्थर की तरह था। इनके माता और पिता इतने निर्दयी थे कि वह सूरदास को ढंग से खाना तक भी नहीं देते थे। इस तरह के भेदभाव से सूरदास का मन एक पल के लिए दुखी होता था पर फिर भी वह अपने आप को संभाल लेते थे। उनका सबसे अच्छा सहारा श्री कृष्ण थे। उन्होंने बचपन से ही भगवान की भक्ति करनी शुरू कर दी। भगवान श्री कृष्ण से उनका एक अलग प्रकार का ही नाता जुड़ गया था।

सूरदास की शिक्षा

सूरदास जी श्री कृष्ण के परम भक्त थे। वह हर पल भगवान की भक्ति में ही डूबे रहते थे। भगवान को पाने की इच्छा की लालसा के चलते ही एक दिन उन्होंने वृन्दावन धाम जाने की सोची। आखिरकार वह वहां के लिए रवाना हो ही गए। अंत में जब वह वृन्दावन पहुंचे तो उन्हें वहां पर एक ऐसे शख्स मिले जिनकी वजह से उनके जीवन ने एक नया मोड़ ले लिया। सूरदास जी को वहां पर बल्लभाचार्य जी मिले।

वह सूरदास जी से मात्र 10 साल ही बड़े थे। बल्लभाचार्य जी का जन्म 1534 में हुआ था। उस समय वैशाख् कृष्ण एकादशी चल रही थी। बल्लभाचार्य जी की नजर मथुरा की गाऊघाट पर बैठे एक इंसान पर गई। वह शख्स श्री कृष्ण की भक्ति में डूबा हुआ नजर आ रहा था।

जब बल्लभाचार्य जी ने उसके पास आकर उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम सूरदास बताया। बल्लभाचार्य जी सूरदास जी के व्यक्तित्व से इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने सूरदास जी को अपना शिष्य बना लिया। वह सूरदास जी को श्रीनाथ जी ले गए। और वहां पर उन्होंने इस कृष्ण भक्त को मंदिर की जिम्मेदारी भी सौंप दी। वहां पर वह अनेकों भजन लिखने लगे। बल्लभाचार्य जी की शिक्षा के चलते सूरदास जी के जीवन को एक सही दिशा मिल गई।

अकबर और सूरदास जी का संबंध

अकबर और सूरदास जी के जीवन से संबंधित एक प्रसिद्ध कहानी है। इस कहानी के अनुसार सूरदास जी के भजनों की चर्चा देश के हर एक कोने में फैल गई थी। यही चर्चा अकबर के कानों तक भी पहुंची। अकबर ने सोचा कि तानसेन के अलावा ऐसा कौन सा संगीत सम्राट हो सकता है? इसी प्रश्न को जानने की लालसा में अकबर सूरदास जी से मिलने मथुरा पहुंच गए। मथुरा पहुंचकर उन्होंने सूरदास जी से कहा कि वह उनको श्री कृष्ण के मधुर भजन गाकर सुनाए। अकबर ने कहा कि अगर सूरदास जी उसको भजन गाकर सुनाएंगे तो वह उनको खूब सारा धन देगा। इस बात पर सूरदास जी ने कहा कि उनको कोई तरह की धन दौलत की लालसा नहीं है। ऐसा कहकर वह अकबर को भजन सुनाने लगे। उस दिन के बाद से ही अकबर सूरदास जी का मुरीद हो गया।

सूरदास जी का विवाह

बहुत से लोगों का यह मत है कि सूरदास जी का विवाह कभी हुआ ही नहीं था। वही कई लोग ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि सूरदास जी का विवाह रत्नावली नाम की एक सुंदर महिला से हुआ था। अब सभी लोगों की अपनी-अपनी राय है। हर किसी का अलग मत है।

सूरदास जी के प्रसिद्ध दोहे

“चरण कमल बंदो हरि राई। जाकी कृपा पंगु लांघें अंधे को सब कुछ दरसाई। बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले छत्र धराई। सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई।।”

भावार्थ – सूरदास कहते हैं कि, श्री कृष्ण की कृपा होने पर तो अपंग व्यक्ति भी आराम से पहाड़ की चढ़ाई कर सकता है। अंधे भी इस संसार को देखने में सामर्थ्य हो जाता है। बहरे को सब कुछ सुनाई देने लगता है और गूंगा व्यक्ति बोलने लगता है। साथ ही एक गरीब व्यक्ति गरीबी से मुक्त हो जाता है। ऐसे में श्री कृष्ण के चरणों की वंदना कोई क्यों नहीं करेगा।

“जसोदा हरि पालनै झुलावै। हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।”

भावार्थ – यशोदा जी भगवान श्री कृष्ण को पालने में झुलाते हुए बहुत खुश दिख रही है। कभी वह लल्ला को झूला झूलाती है और कभी उन्हें प्यार से सहलाती है। कभी गाते हुए कहती है कि निंद्रा तू मेरे लाल के पास आ जा। तू आकर इसे क्यों नहीं सुलाती है।

“सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत। सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।”

भावार्थ – ऊपर दोहे का असली अर्थ यह है कि श्री कृष्ण अपनी माता यशोदा को शिकायत करते हुए कहते हैं – कि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें यह कहकर चिढ़ाते हैं, कि आप मुझे कहीं और से लाए हैं। वह यह भी कहते हैं कि वह बलराम के साथ खेलने नहीं जाना चाहते। ऐसे में श्री कृष्ण बार-बार माता यशोदा से पूछते है कि बताओ माता मेरे असली माता पिता कौन है। माता यशोदा गोरी हैं परंतु मैं काला कैसे हूं। श्रीकृष्ण के इन सवालों को सुनकर ग्वाले सुनकर मुस्कुराते हैं।

सूरदास के अनमोल वचन

1) जीवन के अंतिम क्षण में ईश्वर की आराधना करके इस संसार से छुटकारा पाने का प्रयास करना चाहिए।

2) अवगुण को मत देखिए। एक लोहे को मूर्ति के रूप में पूजा घर में रखा जाता है और दूसरे लोहे को जानवरों को मारने के हथियार के रूप में बूचड़खाने में रखा जाता है। पारस पवित्र और अपवित्र – पत्थर इन दो प्रकार के लोहे के बीच कोई भेद नहीं करता है, यह उन्हें स्पर्श से असली सोना बनाता है।

3) हे मन! तू इस माया रुपी संसार में यहां वहां क्यों भटकता है, तू केवल वृंदावन में रहकर अपने आराध्य श्री कृष्ण की स्तुति कर। केवल ब्रजभूमि में रहकर ब्रज वासियों के जूठे बर्तनों से जो कुछ भी अन्न प्राप्त हो उसे ग्रहण करके संतोष कर तथा श्री कृष्ण की आराधना करके अपना जीवन सार्थक कर।

4) राम नाम एक ऐसा अनोखा खजाना है जिसे हर कोई प्राप्त कर सकता है। धन अथवा संपत्ति को एक बार खर्च करने पर वह कम हो जाता है, लेकिन राम नाम एक ऐसा अनमोल रत्न है जिसे कितने भी बार पुकारा जाए उसका महत्व कभी भी नहीं घटता।

5) हे श्री कृष्ण इस पाप से भरे दुनिया से मुझे मुक्त कीजिए, मेरे सिर पर पाप की ढेरों गठरियां पड़ी है जो मुझे मोह माया से बाहर नहीं निकलने दे रही हैं। हे प्रभु मेरे मन को क्रोध और काम रूपी हवाएं बहुत सताती हैं, कृपया मुझ पर दया करिए।

सूरदास और सूरसागर की रचना

आज जिस महान ग्रंथ सूरसागर को हम अपने घर में रखते हैं, क्या आपको पता है कि वह किसने लिखी थी? दरअसल सूरसागर की रचना सूरदास जी ने ही की थी। सूरसागर को हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। माना जाता है कि इस ग्रंथ को 15 वीं शताब्दी में रचा गया था। इस महान ग्रंथ में एक लाख से भी अधिक श्री कृष्ण के भजन और भजन थे। पर आज के समय में यह भजन एक लाख से घटकर केवल 5000 ही रह गए हैं।

सूरदास जी की रचनाएं

सूरदास जी श्री कृष्ण के इतने बड़े भक्त थे कि उन्होंने भगवान के लिए खूब सारे भजन और दोहे लिख डाले। वह अपने भजनों के माध्यम से लोगों के मन में श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भाव जगाना चाहते थे। सूरदास जी की प्रमुख रचनाएं हैं – सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो

सूरदास का निधन

महान भक्त सूरदास जी का निधन 1583 ईस्वी में हो गया था। निधन के समय वह गोवर्धन के निकट पारसौली गाँव में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्होंने श्री कृष्ण के चरणों में ही अपने आप को समर्पित कर दिया था। आज के समय में हम भगवान के प्रति इतना त्याग और समर्पण किसी भी मनुष्य में नहीं देख सकते हैं। सूरदास जी पर श्री कृष्ण की असीम कृपा थी। अंधा होने की वजह से भले ही अपनों ने उनसे मुँह मोड़ लिया था। परंतु श्री कृष्ण जी ने उन्हें कभी भी अकेला नहीं पड़ने दिया।

Surdas Ka Jivan Parichay: The Life and Legacy of a Blind Saint-Poet

India has a wealthy record of saints, poets, and philosophers who have left an indelible mark on its cultural and spiritual landscape. One such luminary is Surdas, a blind saint-poet whose devotional compositions have persevered to encourage and uplift generations for centuries. Surdas, often called "Sant Surdas" or "Surdas the Saint," is well known no longer most effective for his extremely good poetic competencies but also for his profound religious insights. In this weblog, we're going to delve into the life and legacy of this top notch parent.

Early Life and the Divine Gift of Poetry

Surdas changed into born in 1478 in the village of Sihi, close to Mathura, inside the northern Indian nation of Uttar Pradesh. His birthplace holds exquisite ancient and non secular significance as it's far believed to be the identical village where Lord Krishna spent his early years. Surdas changed into born blind, and it's miles said that his blindness became a divine blessing, as it allowed him to focus his complete being on the divine.

Despite his physical barriers, Surdas exhibited a deep love for Lord Krishna from an early age. He displayed an innate skills for song and poetry, and his verses were packed with profound devotion and an unwavering love for the Lord. It is said that Lord Krishna himself regarded to Surdas and blessed him with divine sight, allowing him to understand the divine form of Krishna along with his internal eye.

Surdas' Literary Legacy

Surdas' literary contributions are primarily inside the form of devotional poetry, often known as "bhajans" or "kirtans." His compositions are an superb mixture of classical song and religious devotion, and they are nevertheless recited and sung by way of devotees today. Surdas' verses are not only a source of religious solace however also a testament to his poetic genius.

One of his most well-known works is the "Sursagar," a group of his devotional songs. These verses extol the virtues and divine love of Lord Krishna and are characterised with the aid of their profound emotional depth. Surdas' poetry has an unrivaled potential to stir the soul, making it a precious part of India's spiritual and cultural background.

Surdas' Teachings and Spiritual Philosophy

Surdas' existence turned into a living testament to his unwavering devotion to Lord Krishna. He advocated a path of devotion (bhakti) because the method to gain non secular cognizance and union with the divine. He believed that real devotion, characterized via love, surrender, and selflessness, may want to lead one to the closing fact and salvation.

Surdas' teachings emphasize that one need to no longer merely are looking for the Lord for cloth profits but ought to establish a loving and personal courting with the divine. His devotion turned into unadulterated, and he taken into consideration Lord Krishna as his loved, his pal, and his divine guide.

Legacy and Influence

Surdas' have an impact on extends far past his time. His devotional songs were sung by endless generations of devotees and feature grow to be an essential part of the wealthy tapestry of Indian classical track. His compositions were rendered in diverse musical styles, making them accessible to a wide range of audiences.

His teachings of natural devotion and selfless love keep to inspire non secular seekers, poets, and musicians alike. Surdas' life tale and works serve as a shining instance of ways the human spirit can transcend bodily barriers to attain non secular greatness.

Conclusion

Surdas, the blind saint-poet, left an indelible mark on India's cultural and religious heritage. His life become a testomony to unwavering devotion and his poems, a wellspring of religious inspiration. Today, Surdas' verses retain to the touch the hearts of people, reminding us of the electricity of pure, selfless love and devotion in our spiritual adventure. Surdas' legacy lives on, carrying ahead the divine melodies and timeless expertise of a virtually splendid soul.

FAQs

Q1. सूरदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था?

A1. सूरदास जी का जन्म 1478 ई० में रुनकता गाँव में हुआ।

Q2. सूरदास जी के माता-पिता का नाम क्या था?

A2. सूरदास जी के पिता का नाम पंडित रामदास था। और उनकी माता का नाम जमुनादास बाई था। उनका परिवार सारस्वत ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखता था।

Q3. सूरदास जी के गुरु का नाम क्या था?

A3. सूरदास जी के गुरु का नाम आचार्य बल्लभाचार्य था।

Q4. सूरदास जी को किस वजह से जाना जाता है?

A4. सूरदास जी को कृष्ण भक्ति के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में अनेकों रचनाएं ऐसी लिखी जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित थी।

Q5. सूरदास जी की प्रमुख रचनाओं का नाम बताइए?

A5. सूरदास जी की प्रमुख रचनाएं हैं – सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो।

Q6. सूरदास जी की पत्नी का नाम क्या था?

A6. दास जी की पत्नी का नाम रत्नावली था।

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