“जय मीरा के गिरधर नागर सूरदास के श्याम, नरसी के प्रभु शाह सांवरिया तुलसीदास के राम…” आज सुबह-सुबह यह भजन चल रहा था। आनंद आ गया इसे सुनकर। भजन कोई भी हो, कानों को उसे सुनने में आनंद की ही प्राप्ति होती है। हमारे देश में भक्तों की बिल्कुल भी कमी नहीं है। हमेशा से ही इस धरती पर ना जाने कितने ही भक्तों ने जन्म लिया है। बहुत पुराने समय में सिर्फ भक्ति और पूजन से ही प्रभु को प्रसन्न किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे भजन भी प्रचलन में आ गए। पर क्या आपको भजन शब्द का इतिहास पता है?
सूरदास का जीवन परिचय (Biography of Surdas in Hindi)
सूरदास का जीवन परिचय
जैसे तुलसीदास जी को महान राम भक्त माना जाता था ठीक उसी प्रकार ही सूरदास जी को भी कृष्ण भक्त माना जाता था। वह हर पल कृष्ण की भक्ति में ही डूबे रहते थे। उनकी भक्ति की चर्चा हर जगह थी। बहुत लोग यह मानते हैं कि वह जन्म से ही अंधे थे। तो कई लोग ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि वह बचपन से अंधे नहीं थे। बल्कि वह बाद में अंधे हुए। सूरदास का जन्म रुनकता’ नामक ग्राम में हुआ था। इनका जन्म 1478 ई० के आसपास माना जाता है। इनके पिता का नाम पंडित राम दास जी था। इनकी माता का नाम जमुनादास था।
जन्म स्थान | रुनकता ग्राम |
जन्म तारीख | 1478 ई० |
नाम | सूरदास |
मृत्यु का स्थान | पारसौली |
पिता का नाम | पंडित रामदास |
माता का नाम | जमुनादास बाई |
गुरु | आचार्य बल्लभाचार्य |
भक्ति का रूप | कृष्ण की भक्ति |
निवास स्थान | श्रीनाथ मंदिर |
भाषा की शैली | ब्रज |
काव्य कृतियां | सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी |
साहित्य में योगदान | कृष्ण की बाल- लीलाओं तथा कृष्ण लीलाओं का चित्रण |
रचनाएं | सूरसागर, साहित्य लहरी, सूरसारावली |
पत्नी का नाम | कई लोग मानते हैं उनका नाम रत्नावली था। कई लोग मानते हैं कि वह ब्रह्मचारी थे। |
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सूरदास का बचपन
सूरदास का जन्म 1478 में सीही में हुआ था। उनका घर रुनकता गाँव में था। कहते हैं कि सूरदास जी का जन्म सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका परिवार निर्धनता के साथ अपना गुजारा कर रहा था। वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। बहुत से लोग यह मानते हैं कि वह जन्म से ही अंधे थे। क्योंकि वह अंधे थे इसलिए उनके माता-पिता और बड़े भाई इनका सम्मान नहीं करते थे।
वह हर पल सूरदास के अंधेपन का मजाक उड़ाते थे। कोई भी माता-पिता का यह फर्ज बनता है कि वह अपने बच्चे की जरूरतों को पूरा करे। लेकिन सूरदास के माता-पिता का दिल सूरदास के लिए पत्थर की तरह था। इनके माता और पिता इतने निर्दयी थे कि वह सूरदास को ढंग से खाना तक भी नहीं देते थे। इस तरह के भेदभाव से सूरदास का मन एक पल के लिए दुखी होता था पर फिर भी वह अपने आप को संभाल लेते थे। उनका सबसे अच्छा सहारा श्री कृष्ण थे। उन्होंने बचपन से ही भगवान की भक्ति करनी शुरू कर दी। भगवान श्री कृष्ण से उनका एक अलग प्रकार का ही नाता जुड़ गया था।
सूरदास की शिक्षा
सूरदास जी श्री कृष्ण के परम भक्त थे। वह हर पल भगवान की भक्ति में ही डूबे रहते थे। भगवान को पाने की इच्छा की लालसा के चलते ही एक दिन उन्होंने वृन्दावन धाम जाने की सोची। आखिरकार वह वहां के लिए रवाना हो ही गए। अंत में जब वह वृन्दावन पहुंचे तो उन्हें वहां पर एक ऐसे शख्स मिले जिनकी वजह से उनके जीवन ने एक नया मोड़ ले लिया। सूरदास जी को वहां पर बल्लभाचार्य जी मिले।
वह सूरदास जी से मात्र 10 साल ही बड़े थे। बल्लभाचार्य जी का जन्म 1534 में हुआ था। उस समय वैशाख् कृष्ण एकादशी चल रही थी। बल्लभाचार्य जी की नजर मथुरा की गाऊघाट पर बैठे एक इंसान पर गई। वह शख्स श्री कृष्ण की भक्ति में डूबा हुआ नजर आ रहा था।
जब बल्लभाचार्य जी ने उसके पास आकर उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम सूरदास बताया। बल्लभाचार्य जी सूरदास जी के व्यक्तित्व से इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने सूरदास जी को अपना शिष्य बना लिया। वह सूरदास जी को श्रीनाथ जी ले गए। और वहां पर उन्होंने इस कृष्ण भक्त को मंदिर की जिम्मेदारी भी सौंप दी। वहां पर वह अनेकों भजन लिखने लगे। बल्लभाचार्य जी की शिक्षा के चलते सूरदास जी के जीवन को एक सही दिशा मिल गई।
अकबर और सूरदास जी का संबंध
अकबर और सूरदास जी के जीवन से संबंधित एक प्रसिद्ध कहानी है। इस कहानी के अनुसार सूरदास जी के भजनों की चर्चा देश के हर एक कोने में फैल गई थी। यही चर्चा अकबर के कानों तक भी पहुंची। अकबर ने सोचा कि तानसेन के अलावा ऐसा कौन सा संगीत सम्राट हो सकता है? इसी प्रश्न को जानने की लालसा में अकबर सूरदास जी से मिलने मथुरा पहुंच गए। मथुरा पहुंचकर उन्होंने सूरदास जी से कहा कि वह उनको श्री कृष्ण के मधुर भजन गाकर सुनाए। अकबर ने कहा कि अगर सूरदास जी उसको भजन गाकर सुनाएंगे तो वह उनको खूब सारा धन देगा। इस बात पर सूरदास जी ने कहा कि उनको कोई तरह की धन दौलत की लालसा नहीं है। ऐसा कहकर वह अकबर को भजन सुनाने लगे। उस दिन के बाद से ही अकबर सूरदास जी का मुरीद हो गया।
सूरदास जी का विवाह
बहुत से लोगों का यह मत है कि सूरदास जी का विवाह कभी हुआ ही नहीं था। वही कई लोग ऐसे भी हैं जो यह मानते हैं कि सूरदास जी का विवाह रत्नावली नाम की एक सुंदर महिला से हुआ था। अब सभी लोगों की अपनी-अपनी राय है। हर किसी का अलग मत है।
सूरदास जी के प्रसिद्ध दोहे
“चरण कमल बंदो हरि राई। जाकी कृपा पंगु लांघें अंधे को सब कुछ दरसाई। बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले छत्र धराई। सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई।।”
भावार्थ – सूरदास कहते हैं कि, श्री कृष्ण की कृपा होने पर तो अपंग व्यक्ति भी आराम से पहाड़ की चढ़ाई कर सकता है। अंधे भी इस संसार को देखने में सामर्थ्य हो जाता है। बहरे को सब कुछ सुनाई देने लगता है और गूंगा व्यक्ति बोलने लगता है। साथ ही एक गरीब व्यक्ति गरीबी से मुक्त हो जाता है। ऐसे में श्री कृष्ण के चरणों की वंदना कोई क्यों नहीं करेगा।
“जसोदा हरि पालनै झुलावै। हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै।।”
भावार्थ – यशोदा जी भगवान श्री कृष्ण को पालने में झुलाते हुए बहुत खुश दिख रही है। कभी वह लल्ला को झूला झूलाती है और कभी उन्हें प्यार से सहलाती है। कभी गाते हुए कहती है कि निंद्रा तू मेरे लाल के पास आ जा। तू आकर इसे क्यों नहीं सुलाती है।
“सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत। सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।”
भावार्थ – ऊपर दोहे का असली अर्थ यह है कि श्री कृष्ण अपनी माता यशोदा को शिकायत करते हुए कहते हैं – कि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें यह कहकर चिढ़ाते हैं, कि आप मुझे कहीं और से लाए हैं। वह यह भी कहते हैं कि वह बलराम के साथ खेलने नहीं जाना चाहते। ऐसे में श्री कृष्ण बार-बार माता यशोदा से पूछते है कि बताओ माता मेरे असली माता पिता कौन है। माता यशोदा गोरी हैं परंतु मैं काला कैसे हूं। श्रीकृष्ण के इन सवालों को सुनकर ग्वाले सुनकर मुस्कुराते हैं।
सूरदास के अनमोल वचन
1) जीवन के अंतिम क्षण में ईश्वर की आराधना करके इस संसार से छुटकारा पाने का प्रयास करना चाहिए।
2) अवगुण को मत देखिए। एक लोहे को मूर्ति के रूप में पूजा घर में रखा जाता है और दूसरे लोहे को जानवरों को मारने के हथियार के रूप में बूचड़खाने में रखा जाता है। पारस पवित्र और अपवित्र – पत्थर इन दो प्रकार के लोहे के बीच कोई भेद नहीं करता है, यह उन्हें स्पर्श से असली सोना बनाता है।
3) हे मन! तू इस माया रुपी संसार में यहां वहां क्यों भटकता है, तू केवल वृंदावन में रहकर अपने आराध्य श्री कृष्ण की स्तुति कर। केवल ब्रजभूमि में रहकर ब्रज वासियों के जूठे बर्तनों से जो कुछ भी अन्न प्राप्त हो उसे ग्रहण करके संतोष कर तथा श्री कृष्ण की आराधना करके अपना जीवन सार्थक कर।
4) राम नाम एक ऐसा अनोखा खजाना है जिसे हर कोई प्राप्त कर सकता है। धन अथवा संपत्ति को एक बार खर्च करने पर वह कम हो जाता है, लेकिन राम नाम एक ऐसा अनमोल रत्न है जिसे कितने भी बार पुकारा जाए उसका महत्व कभी भी नहीं घटता।
5) हे श्री कृष्ण इस पाप से भरे दुनिया से मुझे मुक्त कीजिए, मेरे सिर पर पाप की ढेरों गठरियां पड़ी है जो मुझे मोह माया से बाहर नहीं निकलने दे रही हैं। हे प्रभु मेरे मन को क्रोध और काम रूपी हवाएं बहुत सताती हैं, कृपया मुझ पर दया करिए।
सूरदास और सूरसागर की रचना
आज जिस महान ग्रंथ सूरसागर को हम अपने घर में रखते हैं, क्या आपको पता है कि वह किसने लिखी थी? दरअसल सूरसागर की रचना सूरदास जी ने ही की थी। सूरसागर को हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। माना जाता है कि इस ग्रंथ को 15 वीं शताब्दी में रचा गया था। इस महान ग्रंथ में एक लाख से भी अधिक श्री कृष्ण के भजन और भजन थे। पर आज के समय में यह भजन एक लाख से घटकर केवल 5000 ही रह गए हैं।
सूरदास जी की रचनाएं
सूरदास जी श्री कृष्ण के इतने बड़े भक्त थे कि उन्होंने भगवान के लिए खूब सारे भजन और दोहे लिख डाले। वह अपने भजनों के माध्यम से लोगों के मन में श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भाव जगाना चाहते थे। सूरदास जी की प्रमुख रचनाएं हैं – सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो।
सूरदास का निधन
महान भक्त सूरदास जी का निधन 1583 ईस्वी में हो गया था। निधन के समय वह गोवर्धन के निकट पारसौली गाँव में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्होंने श्री कृष्ण के चरणों में ही अपने आप को समर्पित कर दिया था। आज के समय में हम भगवान के प्रति इतना त्याग और समर्पण किसी भी मनुष्य में नहीं देख सकते हैं। सूरदास जी पर श्री कृष्ण की असीम कृपा थी। अंधा होने की वजह से भले ही अपनों ने उनसे मुँह मोड़ लिया था। परंतु श्री कृष्ण जी ने उन्हें कभी भी अकेला नहीं पड़ने दिया।
Surdas Ka Jivan Parichay- English
Surdas (also known as Kavi Surdas) was an iconic 15th century poet and saint from India's Bhakti movement. Widely considered one of the finest Hindi poets ever to write, his compositions of praise to Lord Krishna remain timeless classics today. Here's a short glimpse into his life:
Birth and Early Life: Surdas was born in 1478 in Sihi, near Delhi in India. According to popular belief, he was blind from birth; alternatively his place of birth has been mentioned as Runkata near Mathura; his family were Brahmins.
Education: Surdas was blind, yet he received education and training in classical music and literature. He was an exceptionally talented musician with deep knowledge of classical Sanskrit texts and scriptures.
Spiritual Transformation:
Surdas underwent an incredible spiritual journey during his early years. He discovered and adopted the Bhakti movement, which emphasizes having an intimate, loving relationship with the divine, especially through Lord Krishna, with whom Surdas developed particular devotion through poetry and music.
Life in Vrindavan: Surdas spent much of his life in Vrindavan, an important holy town associated with Lord Krishna's life and legend. Here it is believed that Surdas had divine experiences that helped inspire many of his compositions.
Literary Contributions: Surdas' poetry takes the form of padas (verses) and songs dedicated to Lord Krishna, collected together into "Sursagar." His verses were written using plain language that made them widely accessible across cultures and backgrounds.
Surdas's poetry has had an enormous impact on India's cultural and devotional landscape, still being performed and revered across India today. His compositions remain popular and widely sung across regions; their themes of love, devotion, and longing for God continue to resonate deeply with audiences worldwide.
Death: Unfortunately, Surdas's exact details regarding his demise remain vague, although various legends exist regarding this event. It is thought he lived during Sikandar Lodi's rule and might have passed away around 1583.
Surdas' life and work are testament to the transformative powers of devotion, poetry, and music to transcend physical limitations. His contributions to the Bhakti movement will live on as part of Indi's cultural and spiritual legacy for years to come.
FAQs
A1. सूरदास जी का जन्म 1478 ई० में रुनकता गाँव में हुआ।
A2. सूरदास जी के पिता का नाम पंडित रामदास था। और उनकी माता का नाम जमुनादास बाई था। उनका परिवार सारस्वत ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखता था।
A3. सूरदास जी के गुरु का नाम आचार्य बल्लभाचार्य था।
A4. सूरदास जी को कृष्ण भक्ति के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में अनेकों रचनाएं ऐसी लिखी जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित थी।
A5. सूरदास जी की प्रमुख रचनाएं हैं – सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती, सूर पच्चीसी, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह और ब्याहलो।
A6. दास जी की पत्नी का नाम रत्नावली था।